पिंगल भाषा पर जिस क्षेत्र का असर पड़ा था, वह है -
- मालवा
- सिंध
- ब्रज
- गुजरात
डॉ. तेसीतोरी
ने राजस्थान के पूर्वी भाग की भाषा को पिंगल अपभ्रंश नाम दिया है। उनके अनुसार इस भाषा से संबंद्ध क्षेत्र
में मेवाती, जयपुरी, आलवी आदि बोलियाँ मानी हैं। पूर्वी राजस्थान में, ब्रज क्षेत्रीय भाषा शैली के उपकरणों को ग्रहण करती हुई, पिंगल नामक एक भाषा- शैली का जन्म हुआ, जिसमें चारण- परंपरा के श्रेष्ठ साहित्य की रचना
हुई।
करौली ज़िले के हिण्डोन क़स्बे में लाल पत्थर की
राज्य की सबसे बड़ी मंडी है। जहां के कारीगर लाल पत्थर की मूर्तियाँ भी खूब
बनाते हैं। तो यहाँ का निम्न हस्त शिल्प भी कम नहीं है।
- मखमल
- जूतियाँ
- कांच की चूड़ियाँ
- लाख की चूड़ियाँ
कलख वृद्ध सिंचाई परियोजना का संबंध किस ज़िले
से है?
- अजमेर
- सवाईमाधोपुर
- जयपुर
- भीलवाड़ा
राजस्थान के इस गाँव में पत्थरों से होली खेलना
और खून बहाना आज भी शुभ माना जाता है।
- बालोतरा
- सारेगबास
- भिनाय
- भीलूड़ा
राजस्थान भर
में अपनी तरह की अनूठी एवं दूर-दूर तक मशहूर पत्थरमार होली आदिवासी बहुल वागड़ के भीलूड़ा गाँव में खेली
जाती है जिसमें लोग रंग-गुलाल और अबीर की बजाय एक-दूसरे पर पत्थरों की जमकर
बारिश कर होली मनाते हैं। इस गांव की युगों पुरानी परम्परा के अनुसार
धुलेड़ी पर्व के दिन शाम को इसका रोमांचक नज़ारा रह-रह कर साहस और शौर्य का
दिग्दर्शन कराता है।
स्थानीय भाषा राजस्थान की इस महत्वपूर्ण वन उपज
को ‘टिमरू’ कहते हैं।
- बांस
- खैर
- तेंदू
- महुआ
तेंदू पत्ते
से बीड़ी तैयार की जाती है। वागड़ की आबोहवा तेंदू पत्तों के उत्पादन के लिए
अनुकूल है।
कमला व इलाइची नाम की महिला चित्रकार किस शैली
से जुड़ी थी?
- नाथद्वारा
- मेवाड़
- मारवाड़
- जयपुर
दयाबाई एवं सहजोबाई का संबंध किस सम्प्रदाय से
था?
- रामस्नेही
- नाथ
- दादू
- चरणदासी
संत चरणदास के
परम शिष्यों रामरूप जी ,जोगजीत जी, सरस मादुरी शरण , सहजोबाई और दयाबाई ने अपनी रचनाओ मे बार बार गुरुदेव
जी का यश गया है | उन्होने गुरुदेव को लोहे को सोना बना देने वाला परस
और बेकार वृक्षों को अपनी सुगंधी से सुगन्धित कर देने वाला चन्दन कहा
है | सतगुरु के
प्रेम मे मगन सहजोबाई ने
सतगुरु को हरी से भी ऊँचा दर्जा दिया है|
यह भी ‘बणी-ठणी’ के लिए प्रसिद्ध चित्रकार निहालचन्द की
प्रसिद्ध कृति रही है।
- चोर पंचाशिका
- रागमाला
- राधा-कृष्ण
- गुलिस्तां
किशनगढ़
चित्रशैली का प्रसिद्ध चित्रकार ‘निहालचन्द था, जिसने प्रसिद्ध ‘बनी-ठणी’ चित्र चित्रित किया।
इन्हें बागड़ की मीरां कहा जाता है -
- काली बाई
- कृष्णा कुमारी
- देऊ
- गवरी बाई
संवत् 1815 में राम नवमी के दिन एक नागर ब्राह्मण परिवार
में इस कन्या का जन्म हुआ।
साधारण परिवार में जन्मी इस कन्या का नाम गवरी बाई था जिसे आज इतिहास में ‘‘वागड़ की मीरा’’ के नाम से जाना जाता है।
राज्य की सबसे छोटी बकरी की नस्ल है -
- जमनापारी
- परबतसरी
- बारबरी
- जखराना
‘कलीला-दमना’ की चित्राकंन परम्परा को मेवाड़ के शासक
संग्राम सिंह द्वितीय ने प्रश्रय दिया था। यह पंचतंत्र का अनुवाद था, जो स्थानीय शैलीमें चित्रों के माध्यम से किया गया था। इसके प्रमुख कलाकार थे -
- नूरूद्दीन
- सुरजन
- साहिबदीन
- रघुनाथ
निम्न में से किस खनिज से राज्य सरकार को
सर्वाधिक राजस्व मिलता है?
- मार्बल
- लिग्नाइट
- तांबा
- सीसा-जस्ता
अलौह धातु
सीसा, जस्ता एवं
ताबां के उत्पादन मूल्य की दृष्टि से देश में राजस्थान का प्रथम स्थान है तथा लौह खनिज
टंगस्टन आदि के उत्पादन मूल्य में प्रदेश का चौथा स्थान बन गया है।
सोनामुखी के बेहतर विपणन के लिए विशिष्ट मंडी
कहां स्थापित की गई है?
- बाड़मेर
- सोजत
- जोधपुर
- जालोर
फलौदी, जि. जोधपुर में। सोनामुखी का पौधा मूलतः अरब
देशों से भारत में आया है। इसको
हिन्दी में सनाय, राजस्थानी में
सोनामुखी कहते हैं। भारत में अधिकतर इसकी खेती तमिलनाडू में की जाती है।
भारत का सोनामुखी की खेती में विश्व में प्रथम स्थान है। भारत से प्रति
वर्ष तीस करोड़ रुपये से अधिक की सोनामुखी की पत्तियों का निर्यात किया जाता
है। सोनामुखी की पत्तियों का उपयोग आयुर्वेदिक, यूनानी तथा एलोपैथिक दवाइयों के निर्माण में
किया जाता है। यह फ़सल
हरियाणा के दक्षिण-पश्चिम भागों में आसानी से उगाई जा सकती है। पूर्णतया बंजर भूमि में उपजाए जा सकने वाले
इस औषधीय पौधे के लिए न तो ज़्यादा पानी की आवश्यकता होती है तथा न ही
खाद की और न ही किसी विशेष सुरक्षा अथवा देखभल की। इसको लगाने के
उपरान्त न तो कोई पशु आदि खाते हैं। इस प्रकार हरियाणा के विभिन्न भागों में
विशेष रूप से बंजर भूमि में इस औषधीय पौधे को खेती करके पर्याप्त लाभ कमाया
जा सकता है।
झीलवाड़ा की नाल या पगल्या से कौनसे दो ज़िले
जुड़ते हैं?
- नागौर-अजमेर
- पाली-राजसमन्द
- डूंगरपुर-उदयपुर
- सिरोही-उदयपुर
झीलवाड़ा की
नाल, जिसे देसूरी
की नालया पगल्या नाम से भी जाना जाता है, मेवाड़ को मारवाड़ से जोड़ती है। मुगलों के
समय हल्दीघाटी के युद्ध के पश्चात् मुगलों ने अधिकांश आक्रमण इसी नाल से
घुस कर किये। इसके अतिरिक्त मेवाड़ को मारवाड़ से जोडऩे वाली अन्य नाल
सोमेश्वर की नाल, हाथीगुड़ा की नाल, भाणपुरा की नाल (राणकपुर का घाटा), कामली घाट, गोरम घाट व काली घाटी है।
निजी क्षेत्र में पवन ऊर्जा की पहली इकाई कहां
स्थापित हुई थी और कब हुई थी?
- फलौदी 2010
- हर्षपर्वत 2005
- देवगढ़, 2007
- जैसलमेर, 2001
जिप्सम के उत्पादन के लिए आजादी के पहले और आज
भी अग्रणी है।
- बाड़मेर
- गंगानगर
- नागौर
- बीकानेर
2001 की जनगणना और 2007 की पशुगणना में किस ज़िलों में सर्वाधिक
लिंगानुपात, सर्वाधिक
पशुधनत्व और सर्वाधिक हिंदू आबादी का प्रतिशत पाया गया है?
- डूंगरपुर
- जयपुर
- बाँसवाड़ा
- बाड़मेर
हांग-कांग की फोकस एनर्जी नामक कम्पनी हमें गैस की खोज और
उसके उत्पादन में सहयोग कर रही है। इसको वर्तमान में कौनसा कार्यक्षेत्र
दिया गया है।
- सांचोर
- तनोट
- शाहगढ़
- बाधेवाला
वर्तमान में
फोकस एनर्जी द्वारा क्षेत्र में उत्पादित की जाने वाले बैस की सप्लाई रामगढ़ स्थित विद्युत तापीय गृह को की
जा रही है। वर्तमान में 70 लाख क्यूबिक
फीट गैस की सप्लाई हो रही है।
ए.जी.जी. राजस्थान में अँग्रेज़ी राज के प्रतिनिधि हुआ
करते थे। उनका कार्यालय प्रारम्भ में अजमेर में था, जिसे माउन्ट आबू में इस वर्ष स्थानान्तरित कर दिया गया था।
- 1856
- 1889
- 1835
- 1902
राजस्थान में सर्वाधिक प्रतिशत किस प्रकार के
वनों का पाया जाता है?
- ढाक वन
- सालर वन
- धौंक वन
- बांस वन
राज्य में तिल के उत्पादन में अग्रणी ज़िलों का
सही अवरोही क्रम है।
- पाली, नागौर, अजमेर, जयपुर
- पाली, सवाईमाधोपुर, जोधपुर, करौली
- कोटा, करौली, बारां, जयपुर
- जयपुर, अजमेर, टोंक, पाली
कुड़क, मुरकी, ओगन्या, टोटी व गुड़दा, शरीर के किस भाग में पहने जाने वाले गहने हैं?
- नाक
- कान
- हाथ
- गला
मूलतः यह नाट्य गायन पठानों की पश्तो भाषा में
होता था। राजस्थान आकर यह यहां के रंग में रंग गया है।
- जयपुरी ख्याल
- तुर्रा कलंगी
- चारबैत ख्याल
- माच ख्याल
भपंग किस प्रकार का वाद्य है?
- अवनद्य
- सुषिर
- धन
- तत्
भपंग - तूंबे
के पैंदे पर पतली
खाल मढी रहती है। खाल के मध्य में छेद करके तांत का तार निकाला जाता है। तांत के ऊपरी सिरे पर लकड़ी
का गुटका लगता है। तांबे को बायीं बगल में दबाकर, तार को बाएँ हाथ से तनाव देते हुए दाहिने हाथ
की नखवी से प्रहार
करने पर लयात्मक ध्वनि निकलती है
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